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इल्हाम-इल्हान / विमलेश शर्मा
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एक दिन घटता है कुछ
तक़दीर की ही तरह!
काग़ज़ पर अचल वे
सिहर उठते हैं,
मन की एक ठेल भर से
शब्द ही तो हैं
थिर होकर भी अथिर!