भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इश्क़ आज़ार हुआ जाता है / नमन दत्त
Kavita Kosh से
इश्क़ आज़ार हुआ जाता है।
दिल गुनहगार हुआ जाता है।
दर्द से साँस-साँस ज़िंदा है,
अलम क़रार हुआ जाता है।
रंग हर पल बदल रहा है तेरा,
तू अदाकार हुआ जाता है।
दिल ही खोजे है राह मिलने की,
दिल ही दीवार हुआ जाता है।
तेरी रहमत के भरोसे, ये दिल–
फिर ख़तावार हुआ जाता है।
मौत दे दे, ये करम कर मालिक-
जीना दुश्वार हुआ जाता है।
दश्त की ओर अब चलें "साबिर"
शहर बाज़ार हुआ जाता है।