भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इश्क़ में हुआ हो भले धोखा / कात्यायनी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इश्क़ में हुआ हो भले धोखा
हुस्नो-इश्क़ को
समझा नहीं कभी धोखा।
यूँ ही भरम कई हुए
ज़िन्दगी में,
पर ज़िन्दगी को कभी
भरम नहीं समझा।
जितना हारे
हार न मानने की ज़िद बढ़ती गई ।


रचनाकाल : सितम्बर 1997