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इस अयोध्या में : तीन कविताएं / शहंशाह आलम

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(‘हंस’ के संपादक राजेन्द्र यादव के लिए)

एक

यह अयोध्या हमारे समय की
अयोध्या थी
यह अयोध्या एकदम विचित्र
अयोध्या थी

इस अयोध्या के सपने में गिद्ध आते थे
सांस्कृतिक संकट बनकर

यह पूर्व घोषित था और पहले ही कहा जा चुका था
गहरे काले रंग का चश्मा पहने राजेन्द्र यादव नामक
भयानक जीव को सौ गालियां सुननी थीं
उसके शरीर में सैकड़ों त्रिशूल घोंपे जाने थे इस अयोध्या में

यह मोटी बात उसकी मोटी बु्द्धि में घुसेड़ना
उनके लिए बड़ा कठिन सिद्ध हो रहा था इन दिनों

इन दिनों असल में राजेन्द्र यादव को समझाया जाना था कि
यह अयोध्या है और यह अयोध्या
किसी राम की अयोध्या नहीं है बल्कि
यह अयोध्या मक्कार धर्माधिराज की अयोध्या है
जिसके इर्द-गिर्द हत्यारे बैठे थे संत बनकर

पहले ही कहा जा चुका है
तमाम हत्यारों के बचाव में वे निकालेंगे ‘गौरव-यात्रा’
वर्तमान के अमात्य-महामात्य और गृहमंत्री
ऐसे ही प्रसन्न होते थे अपने भक्तों पर
और ऐसे ही सौंपते थे सत्ता की कृतज्ञता

इन दिनों असल में
राजेन्द्र यादव को यह भी समझाया जाना था कि
अंसारी रोड, दरियागंज में उसके कम्यूनिज़्म की
या गुजरात के बहाने उस जैसे रामसेवक की
आत्म-स्वीकृतियों की ज़रूरत नहीं है
इस अयोध्या के निमित्त

असल में, राजेन्द्र यादव नामक जीव
बड़ा अहमक़ जीव था
बड़ा बुड़बक जीव था
इतना अहमक़ इतना बुड़बक कि
वह रोज़ उनके विरुद्ध खड़ा होता
रोज़ उनके फासीवाद को गरियाता
बड़े बेसुरे बड़े भद्दे स्वर में

जबकि वे राजेन्द्र यादव को सस्वर गीत सुनाते:
तुम तो ढिंढोरची हो अल्पसंख्यकों के
तुम तो ढिंढोरची हो दलितों के
तुम तो ढिंढोरची हो स्त्रियों के

यह गीत वे ही गा सकते थे
इसलिए कि इस अयोध्या के कवि शासक के घुटनों में
बड़ा भारी दर्द पाया जा रहा था
और मरे हुओं की आत्माएं कुछ अधिक ही
परेशान कर रही थीं उन्हें इन दिनों

दो

इस अयोध्या के राजा और राजा के
सहयोगियों की क्रूरताओं के क़िस्से
पूरी दुनिया में सुने जा सकते थे इन दिनों

यह अयोध्या अब किसी अजायबघर में
तब्दील होती जा रही थी
इस अयोध्या में बस लाशें ही लाशें थीं सजी हुईं
आतंकवादी हमले में
सांप्रदायिक दंगे में
बाढ़ और सुखाड़ में
भूख और बेरोज़गारी में
मरे हुए लोगों को
बाज़ाब्ता विज्ञापित किया जा रहा था
पोस्टरों में छापकर
टेलीविज़न पर दिखाकर
या राजा की क्रूर मुस्कुराहटों में
या राजा की ठूंठ कविताओं में

आदिकालीन समयों को सार्थक करते हुए
वृक्षों चिडि़यों तक के सपने छीनते हुए
हमारी प्रसन्नताओं को विसर्जित करते हुए
बेशर्म अतीत को सही ठहराते हुए
राजा कर रहे थे ईश्वर बनने का ढोंग

मैं सोचता हूं, राजा जो कह रहे थे
मैं सोचता हूं, राजा जो कर रहे थे
क्या वही सत्य है अंतिम सत्य

राजा घात लगाए बैठे हैं पत्तों के पीछे
किसी तेंदुए की तरह हमारी ही ताक में

मैं भारतीय नागरिक भौंचक हूं
इस अयोध्या में आप
पाश हैं
सफ़दर हाशमी हैं
मान बहादुर सिंह हैं

आप मक़बूल फ़िदा हुसेन हैं
आप राजेन्द्र यादव हैं
आप मेधा पाटकर हैं
आप शाहबानो हैं

आप हिंदू हैं
आप मुसलमान हैं

आप स्त्री हैं
आप दलित हैं

इस अयोध्या में आप इंसान हैं
तो आप जीवित नहीं बचेंगे
आप मारे जाएंगे इस पूरे इतिहास में

किसी न किसी ईश्वरीय संगठन के
कुशल हाथों से मारे जाएंगे
किसी न किसी अपवित्र हाथों से तारे जाएंगे

तीन

अभी कल की घटना थी बिलकुल कल की
(उनके लिए कोई असाधरण घटना नहीं थी)
उधर सूरज निकला था
इधर असंख्य-असंख्य ईश्वरभक्त
हथियार चलाने की क्लास से लौटते हुए
धर्म की ध्वजा को मज़बूती से संभाले हुए
गहन चिंतन-विमर्श का बखान करते हुए
सारी हत्याओं को सांस्कृतिक हत्या बताते हुए
कह रहे थे:
शिक्षा में ज्योतिष-गणित परम आवश्यक है
इससे भी आवश्यक है नरेंद्र मोदी जैसों को बचाना
और फिर बंधु चुनाव आयोग ने तो... राम-राम

यह सब कोई गहनतम संकेत था हमारे हिन्दुस्तान के लिए
या कुछ और या कोई भयानक वास्तविकता

जबकि ‘पुनर्लेखन अभ्यास’ में सिर्फ़
इतिहास के पुनर्लेखन की तैयारी नहीं चल रही थी
तैयारी चल रही थी पुरानी खीझ को सत्य साबित करने की
तैयारी चल रही थी घमंडी अमेरिका और इज़राइल बनने की

इस अयोध्या में अब वे राम भरोसे बैठे रहना नहीं चाहते
खांसते नहीं रहना चाहते किसी पुराने मर्ज़ में
न तिलचट्टों की अस्थियों को लेकर
बौखते रहना चाहते थे यहां और वहां

बहरहाल कितनी अजब बात है
बहरहाल कितनी ग़ज़ब बात है
वे ‘ग्लोबल विलेज’ को लेकर परेशान नहीं थे
युद्ध के माहौल को लेकर परेशान नहीं थे
हवाला पेट्रोल पम्प ताबूत घोटाले को लेकर परेशान नहीं थे

वे सिर्फ़ और सिर्फ़ सत्ता की छीना-झपटी और उसी के लिए
भागमभाग में परेशान थे इन दिनों और इस समय।