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इस अरण्य में पैदल / अनूप अशेष
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झाड़ी पकती झरबेरी
पत्थर फूटे झरने
दिन आए है
पैदल चलकर
बीहड़ घाट उतरने ।
पके बाँस की रगड़
घास में आग फूटती है
बूढ़ी लकड़हारनी
भूखे-हाथ कूटती है
ऐसी नई व्यवस्था
जंगल
कौन जाए चरने ।
बाघ शेर तेंदुए बस्ती में
इस अरण्य में हम
चले कौन आँखों के रस्ते
खुले रास्ते कम
कोल भील के पाँव
कहाँ जाएँ
पेटों को धरने ।