भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इस जग की चल छाया चित्रित / सुमित्रानंदन पंत
Kavita Kosh से
इस जग की चल छाया चित्रित
रंग यवनिका के भीतर
छिप जाएँगें जब हम प्रेयसि,
जीवन का छल अभिनय कर!
रंग धरा पर हास अश्रु के
दृश्य रहेंगे इसी प्रकार
हम न रहेंगे, मायामय का
पर न रुकेगा खेल, उमर!