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इस झोंपड़ी में / प्रभात
Kavita Kosh से
इस झोंपड़ी में इतनी जगह शेष है कि
बीस व्यक्ति खड़े रह सकें यहाँ आकर
मगर इसके वीरान हाहाकार में
मैं किसी को आने नहीं देना चाहता
फिर भी आ ही जाता है कोई न कोई
सूखी घास सरीखी मेरी इच्छा को कुचलता हुआ
कोई भी आ जाता है कोई भी दाना ढ़ूँढ़ती चींटी
सूनी गाय भटकता कुत्ता
मुझे हिचक होती है उनसे मना करने में
यही है अनंत मामलों में मेरे चुप रहने की वजह