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इस देश की सबसे सार्थक कविता / अरुण देव

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याद हो कि न याद हो
भारत एक समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य है

इसके समस्त नागरिकों को
सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक
न्याय, विचार, अभिव्यक्ति
विश्वास, धर्म, उपासना की स्वतन्त्रता, प्रतिष्ठा, अवसर की समता प्राप्त है

समरसता, समानता, भ्रातृत्व की भावना बहे
धर्म, भाषा, जाति, वर्ग और क्षेत्र की सीमाएँ बाधक न बनें

त्याग दी जाएँ ऐसी प्रथाएँ और विचार
जो मनुष्यों में भेद करते हों
स्त्रियों के सम्मान और गरिमा के प्रतिकूल हों

गंगा-जमुनी तहज़ीब की मजबूत रवायत के महत्व को समझा जाए
वे समृद्ध हों सार्थक बनें

वन, झील, नदी, जीवों के लिए भी इस भूभाग पर जगह रहे
वे इसके आदि नागरिक हैं
फलें, फूलें, निर्भीक विचरें

वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानवतावाद, ज्ञानार्जन, प्रगति की भावना से हम बढ़ें
हिंसा से दूर रहें

हो सतत प्रयास
सभी क्षेत्रों में बेहतरी की ओर बढ़ने का

जिससे राष्ट्र बढ़ें
विश्व सजे

यह वही कविता है जिसे इस देश के नागरिकों ने मिलकर अपने ख़ून से लिखा है
आज़ादी की कविता

यही है देशप्रेम और राष्ट्रभक्ति।