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इस धरती पर / विवेक तिवारी

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इस धरती पर
किसी जगह
एक रंग-बिरंगी
अनन्त जिजीविषा से परिपूर्ण

कोई खुशबू
कोई मासूमियत
और कोई मुस्कान

जब अपने भीतर की जंजीरों को तोड़कर
मोगरा के फूलों की महक की तरह
दूर-दुर तक फैलती हवाओं
लहरों
और पर्वत श्रेणियों में
बिखरती-लहलहाती चली जाती

तो युग-बोध और काल-चेतना से परे
ह्रदय के भीतर
ठहरे हुए मौसमों
दस्तकों
भावों
और पुरानी आवाजों में
आज भी कुछ ऐसा लगता है
जिसे पूरी उम्र जिया जा सके ।