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इस ब्रह्माण्ड में / पद्मजा शर्मा

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इस सृष्टि के
आदि में कोई था
न मध्य में कोई है
न अन्त में कोई होगा
सिवाय तुम्हारे और मेरे

इस ब्रह्माण्ड में
न धरती आकाश है
न सूरज चाँद तारे
जब से हम मिले
खो गए सारे

न इस सृष्टि में
जन्म-मरण है
न उत्त्पति-विनाश
है तो बस हर तरफ
हमारे प्यार का प्रकाश है

इस सृष्टि में न झरने हैं
नदी न समदंर
और न ही है कहीं बरसात
युगों से हम ही बह रहे हैं
बनकर पानी
साथ-साथ।