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इस भरे भादों में / काकली गंगोपाध्याय

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बारिश से धुली हुई खिड़की के काँच से छनकर
सड़क की जो रोशनी आती है—
लगता है, अभी बहाकर आई है !
ƒघर के छोटे छिद्रों से
छन रही है रोशनी
जैसे मध्यवित्तिय परिवार में
आता है सुख !
बाहर रस्ते पर
थई-थई नाच रहे हैं दुख इतने सारे—-
घर-आँगन को डुबा देंगे !
ऐसे समय में
बंधु कहीं होता कोई भी !
सब व्यस्त हैं
अपने ध्वस्त संबल जुटाने में !
इस समय में तुम भी
कुछ हिसाबी होना सीखो !
छिटकिनियों की तुम मरम्मत करा लो,
बह जाने का साहस सबमें नहीं होता ।
निर्मूल दूरˆत्व की ओर बढ़ते चलो—
पानी से करो द्वंद्व,
पर संभालकर रखो सावधानी से
वह नोटबुक
जिसमें
प्रियजनों के पते-ठिकाने हैं ।
  
मूल बंगला से अनुवाद : चंद्रिमा मजूमदार और अनामिका