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इस मुहब्बत में कोई भाया नहीं / रंजना वर्मा
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इस मुहब्बत में कोई भाया नहीं
था जिसे चाहा उसे पाया नहीं
धूप की नगरी में हैं हम आ गये
है शज़र का भी कहीं साया नहीं
बस बुजुर्गों की दुआ लेते रहो
इससे बढ़ के कोई सरमाया नहीं
जिंदगी इक इम्तेहां का नाम है
है जुदा मसला कि रास आया नहीं
आसमाँ में यूँ घिरी आती घटा
एक पल सूरज नज़र आया नहीं
जो यहाँ आया उसे जाना पड़ा
आबे जमजम पी कोई आया नहीं
हो रहीं थम थम के ऐसी बारिशें
तप रहे दिल ने सुकूँ पाया नहीं