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इस मोड़ पर / पूर्णिमा वर्मन

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वक्त हरदम

साथ था मेरे

कभी रुमाल बनकर

पॊंछता आँसू

कभी

तूफ़ान बनकर

टूटता मुझ पर


कभी वह भूख था

कभी उम्मीद का सूरज

कभी संगीत था

तनहाइयों का

कभी वह आख़िरी किश्ती

जो मुझको छोड़ जाती थी

किनारे पर अकेला


वो हमदम था

कि दुश्मन

या कि कोई अजनबी था

समझते ना-समझते

उम्र के इस मोड़ पर

आ गये दोनों...