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इस विरामचिन्ह के उस पार / मेमचौबी देवी
Kavita Kosh से
भुलाने पर भी एक पल के लिए
रहते थे तुम अटल
घूम कर लौट आने पर भी
रहते थे छाया की भाँति मेरे पीछे
स्वप्न में भी
आए चुपचाप
क्या कह रहे हो, क्या बता रहे हो
भूल गए क्या, जा रही हूँ मैं
इस विरामचिह्न के उस पार
स्वर्ण-मृग की खोज में
अनपहचाने गंतव्य का प्यासा है मन
शायद वह गंतव्य हो सहारा या साइबेरिया
आकाश पर उड़ने वाला यह पक्षी
छतनार वृक्ष पर
बना लेगा पड़ाव
लेकिन कहाँ है सूर्य
कहाँ है धरती
मानसरोवर का एक जल-कण
प्यासा था निस्सीम सागर का
कहाँ है मेरा गंतव्य
ऊँटविहीन मरुभूमि की यात्रा
लेकिन रख दिया है मैंने
एक क़दम इस विरामचिह्न के उस पार
मणिपुरी से अनुवाद : इबोहल सिंह कांजम