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इस समय / हरीश करमचंदाणी
Kavita Kosh से
कविता लिखने की सोचता था
और डर जाता था
सच लिखना बोलने से ज्यादा ना हो बेशक
पर खतरनाक तो था ही
और अभी मैं ज़ख़्मी था
हाँफ रहा था
चाहता था विश्राम
साँस भरना ज़रूरी था अभी