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इस समाज मे हर इक प्राणी / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
इस समाज का हर इक प्राणी, रावण का निर्माता है
पूरे वर्ष पाल कर उसको, फिर इक रोज़ जलाता है
सत्य धर्म की रक्षा के हित, ब्रह्म निरत अवतारों में
कभी राक्षसों का संहर्ता, गौएँ कभी चराता है
पाप बढा जब जब धरती पर, ईश्वर ने है जन्म लिया
दुराचारियों को विनष्ट कर ,सच का साथ निभाता है
किसी अँधेरी बन्द गली में, जा कर है ईमान छिपा
झूठ फरेब बेवफ़ाई अब, हर प्राणी को आता है
गली गली लुट रही अस्मिता, अब है बेबस नारी की
किसी सभा में कृष्ण न कोई, आ कर चीर बढ़ाता है
राम नाम का भगवा ओढ़े, कोई आसाराम बना
राम रहीम कहीं जनता को, ठग खुद पे इतराता है
शक्ति स्वरूपा नारी जागे, प्रगति करे हो शक्तिमयी
इसी हेतु मंदिर मंदिर में, मैया का जगराता है