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इस सुबह को गौर से देखो / रवि प्रकाश
Kavita Kosh से
देखो,
इस सुबह को गौर से देखो !
सूरज उंघते हुए
निकल रहा है कैसे
धरती की कोंख से ,
और रेंग रहा है पहाड़ों पर
आकाश की तरफ !
गौरैया कैसे हसरत भरी नज़रों से
देख रही है आकाश को,
बंद कलियों को गौर से देखो
जो बस अभी मुस्कुराने को है,
आकाश की ओर चलने को आतुर
दूबों की गोंद में खेलती
ओस की बूंदों को देखो !
उठो ,
तुम भी उसी तरह उठो
उठो कि
तुम भी उसी राह के मुसाफिर हो
तुम्हारे तकिये और गाल के बीच में
अभी भी थोड़ी सुबह बाकी है
उठो,उसी तरह उठो