भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इसी शहर में / आलोक श्रीवास्तव-२
Kavita Kosh से
इसी शहर में
इन्हीं हवाओं में
सांस लेती हो तुम
इसी शहर के भीड़ भरे
जगमग रास्तों से
गुज़रता हूं मैं अकेला
तुम्हें याद करता ।