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इसी हँसी ने / रामकृष्ण पांडेय
Kavita Kosh से
किसने इतने फूल खिलाए
इसी हँसी ने, इसी हँसी ने
किसने खाली आसमान में
इंद्रधनुष की आभा भर दी
इसी हँसी ने, इसी हँसी ने
और पहाड़ों के सीने को
किसने निर्झर-सुर से सींचा
इसी हँसी ने, इसी हँसी ने
मेरे मन की ख़ामोशी में
जीवन का संगीत जगाया
इसी हँसी ने, इसी हँसी ने