ई ओकरे संतान छै / अनिल शंकर झा
जें संयम के रथ पर अपनोॅ जय अभियान चलैलक,
मद सें पूरित सुरगण के सब यान तोड़ी देखलैलक।
वर्षों छानी खाक विजन के एक रेख केॅ खींची,
अरावली के घाटी केॅ निज घाम रक्त सें सींची।
आजादी पर जेकरोॅ गाथा संुदर सहज बितान छै,
ई ओकरे संतान छै।
जें सब मालव वीरोॅ केॅ संगठन सूत्र पहनैलक,
छितरैलोॅ चिनगारी चुनलक क्रांति अनल दहकैलक।
मुट्टी भर सेनानी सें अरिदल केॅ देलक चुनौती,
आरो के मुक्ति ही जीवन भर के रहै मनौती।
ओकरे पदबंदन अखनी आजादी के संधान छै,
ई ओकरे संतान छै।
कोमलांगी होय केॅ भी, जौनें खींची केॅ समशीर,
रणचंडी बनली उतरी केॅ सिंही रंणधीर।
बलिवेदी पर अर्पित करलक अपनोॅ सब टा साध,
थर्रैलै ओकरा देखी केॅ क्रूर फिरंगी ब्याध।
वहेॅ चाह छै, वहेॅ तड़प छै, वैहने तेॅ अरमान छै,
ई ओकरे संतान छै।
एक सती के रक्षा लेली बान्हलक सेतु अपार,
दुर्जय हठी दानवेन्द्र सें तनलै ठानी रार।
गठित करलकै आर्त जनोॅ केॅ दै केॅ एक संकल्प,
खोजेॅ नें पारलक लंकापति एकरोॅ कोय विकल्प।
अपहर्ता पर तनलोॅ सीधा भरतवंश के बाण छै,
ई ओकरे संतान छै।
नरकासुर के नरक ध्वस्त करी मुक्त करी मुनि जन के,
चक्रसुदर्शन आरो वंशी समझैलक गुणि जन केॅ।
जन्म लेलक कारा में लोगोॅ केॅ करलक उनमुक्त,
सबसें उपर कर्म धर्म सें शासित गीता सूक्त।
कलिमर्दन के बाद बिहॅसलै गोकुल गाँव बिहान छै,
ई ओकरे संतान छै।
जें वैभव के त्याग करी केॅ तप केॅ श्रेष्ठ बनैलक,
यशोधरा रं नारी शय्या, राज-पाट ठुकरैलक।
सत्य, अहिंसा, करूणा, संयम के समझैलक मर्म,
जेकरा पाबी धन्य भेलै शोषित आ पीड़ित धर्म।
जेकरोॅ ध्वज वाहक होला में परदेशी के शान छै,
ई ओकरे संतान छै।
यै धरती पर सबसें पैहनें फुटलै शान के रश्मि,
यहीं कहलकै तपपूत ने सूत्र भी सोहं अस्मि।
ये धरती केॅ जननी, नदिहौ केॅ भी माय कहै छै,
गुरू केॅ पिता, पिता में देबोॅ के भी भाव भरै छै,
यही रत्न-गर्भा के तप-फल के समुचित वरदान छै,
ई ओकरे संतान छै।