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ईर्ष्या / आनंद कुमार द्विवेदी

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तुम्हें
न प्रेम चाहिए
न मैं
न साथ
न ही सुख
इतनी कम हैं तुम्हारी चाहतें
कि कभी कभी
तुमसे ईर्ष्या होती है