ईश्वर और प्रार्थनाएँ / हर्षिता पंचारिया
1.
प्रार्थनाएँ कितनी बार ईश्वर तक पहुँची,
मैं, ये तो नहीं जानती।
परंतु हर बार हाथ जोड़ने के बाद
हथेली देखकर ऐसा लगता है कि
इन रेखाओं के मध्य कोई तो है,
जो मुस्कुरा रहा है
2.
प्रार्थनाएँ वह चिड़िया है,
जो एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर बैठकर
आसमान में उड़ गई।
और ईश्वर ठूँठ पर उगा एक पत्ता मात्र
जो चिड़िया की प्रतीक्षा कर रहा है।
कभी कभी कुछ पीड़ाएँ इसलिए भी चूम लेना चाहिए,
ताकि
टूटे पंखों से प्राण फूँकने का रहस्य बरकरार रह सकें।
3.
प्रार्थनाएँ चिट्ठियाँ है
और ईश्वर वह ज़िद्दी रूठा हुआ प्रेमी
जो मेरी चिट्ठियों का जवाब नहीं दे रहा
वह मेरे मनुष्य बनने की हठ लिए बैठा है
उसे कैसे समझाऊँ,
कि इस दौर में हिंदू मुस्लिम बनना बहुत आसान है
पर मनुष्य बनना नहीं
4.
हार, फूल, नैवेद्य या दक्षिणा के ना चढ़ाने पर भी,
मेरा ईश्वर कभी मुझसे रूष्ट नहीं होता
जानते हो क्यों?
क्योंकि वह जानता है,
"क्षमा, दया, प्रेम, करुणा" ही वह पदार्थ है
जिसके लिए उसने मनुष्य की खोज की
5.
किसी ने चाँद माँगा किसी ने तारें
और
किसी ने माँगा पूरा का पूरा आसमान
जब ईश्वर के पास मुझे देने के लिए कुछ बचा ही नहीं,
तो मैंने माँग ली ईश्वर से उसकी परछाई
अब ईश्वर प्रतिबद्ध है
मुझे रोशनी देने के लिए
पर अब, तुम्हारी परछाई ने मेरी आत्मा को तक ढक दिया है
सिवाय तुम्हारे नाम की धुन के मुझे कुछ सुनाई ही नहीं देता!