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ईश्वर का जन्म स्थान-1 / स्वप्निल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
खुदाई में वे ढूंढ रहे हैं
इतिहास की प्राचीन अस्थियाँ
वे किसी धर्मभीरु राजा का प्रलाप
और ईश्वर की
दया ढूंढ रहे हैं
अपनी कुर्सी के लिए वे
खोज रहे हैं देवताओं की
मज़बूत पीठ
सप्तऋषियों के आशीर्वाद
वे जनता को शताब्दियों तक
मूक बनाने के लिए
कर रहे हैं तप
जैसे ही हिलती है उनकी कुर्सी
वे भूकम्प की भविष्यवाणी कर
प्रजा को संकट में डाल देते हैं
उनकी राजनीतिक विपदा में
सबसे ज़्यादा काम आता
है ईश्वर
वह ईश्वर जो अभी तक
एक बूढ़ी और जर्जर इमारत में
क़ैद है
प्रार्थनाएँ चल रही हैं वहाँ
अफवाहों को लग गए हैं पंख
पुजारियों के करुण विलाप से
गूँज रहा है पवित्र नगर ।