भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ईश्वर का जन्म स्थान-1 / स्वप्निल श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खुदाई में वे ढूंढ रहे हैं

इतिहास की प्राचीन अस्थियाँ

वे किसी धर्मभीरु राजा का प्रलाप

और ईश्वर की

दया ढूंढ रहे हैं


अपनी कुर्सी के लिए वे

खोज रहे हैं देवताओं की

मज़बूत पीठ

सप्तऋषियों के आशीर्वाद


वे जनता को शताब्दियों तक

मूक बनाने के लिए

कर रहे हैं तप


जैसे ही हिलती है उनकी कुर्सी

वे भूकम्प की भविष्यवाणी कर

प्रजा को संकट में डाल देते हैं


उनकी राजनीतिक विपदा में

सबसे ज़्यादा काम आता

है ईश्वर


वह ईश्वर जो अभी तक

एक बूढ़ी और जर्जर इमारत में

क़ैद है


प्रार्थनाएँ चल रही हैं वहाँ

अफवाहों को लग गए हैं पंख

पुजारियों के करुण विलाप से

गूँज रहा है पवित्र नगर ।