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ईसुरी की फाग-20 / बुन्देली
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♦ रचनाकार: ईसुरी
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पग में लगत महाउर भारी
अत कोमल है प्यारी
आद रती कौ लांगा पैरें
तिल की ओढ़ें सारी
खस खस की इक अंगिया तन में
आदी कोर किनारी
रती रती के बीच 'ईसुरी'
एक नायिका ढारी।
भावार्थ
ईसुरी ने रजऊ के सुकुमारपन के वर्णन में अतिशयोक्ति अलंकार का अनूठा प्रयोग किया है। देखिए — ईसुरी कहते हैं कि प्रिया अति कोमल और सुकुमार है। महावर लगने से पैर नहीं उठते। उसके लंहगे का वजन आधी रत्ती भर है और जो साड़ी ओढ़ी है उसका वजन तिल के बराबर है। उसने जो चोली पहनी है वो खसखस यानि पोस्त के दाने की है जिसकी किनारी भी आधी है यानि बेहद बारीक है। इस तरह नायिका का रूप रत्ती-रत्ती से ही ढला है।