भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ईसुरी की फाग-22 / बुन्देली
Kavita Kosh से
♦ रचनाकार: ईसुरी
भारत के लोकगीत
- अंगिका लोकगीत
- अवधी लोकगीत
- कन्नौजी लोकगीत
- कश्मीरी लोकगीत
- कोरकू लोकगीत
- कुमाँऊनी लोकगीत
- खड़ी बोली लोकगीत
- गढ़वाली लोकगीत
- गुजराती लोकगीत
- गोंड लोकगीत
- छत्तीसगढ़ी लोकगीत
- निमाड़ी लोकगीत
- पंजाबी लोकगीत
- पँवारी लोकगीत
- बघेली लोकगीत
- बाँगरू लोकगीत
- बांग्ला लोकगीत
- बुन्देली लोकगीत
- बैगा लोकगीत
- ब्रजभाषा लोकगीत
- भदावरी लोकगीत
- भील लोकगीत
- भोजपुरी लोकगीत
- मगही लोकगीत
- मराठी लोकगीत
- माड़िया लोकगीत
- मालवी लोकगीत
- मैथिली लोकगीत
- राजस्थानी लोकगीत
- संथाली लोकगीत
- संस्कृत लोकगीत
- हरियाणवी लोकगीत
- हिन्दी लोकगीत
- हिमाचली लोकगीत
तोरे नैना मतबारे
तिन घायल कर डारे
खंजन खरल सैल से पैने
बरछन से अनयारे
तरबारन सैं कमती नइयाँ
इनसें सबरई हारे
'ईसुर' चले जात गैलारे
टेर बुला कैं मारे।
भावार्थ
प्रिये, तुम्हारे नयन बहुत मतवाले हैं, जिन्होंने घायल कर दिया है। ये खंजन जैसे आकर्षक, विष के बुझे हुए, पर्वत शिखर की तरह नुकीले हैं और बरछी की तरह तीखे हैं।
ये नयन तलवारों से कम नहीं हैं जिनसे सब हार जाते हैं। ईसुरी कहते हैं कि ये नयन राह चलते को बुला कर मार देते हैं।