भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उँचियो माड़ब छराबिहऽ हो बाबा / अंगिका लोकगीत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

उँचियो माड़ब छराबिहऽ<ref>छवाना; छाजन करवना</ref> हो बाबा, उँचियो नाम तोहार हे।
मड़बा बिछाबिहऽ<ref>बिछवाना</ref> बाबा पाटक<ref>पाट का; पटुए का</ref> जाजिम<ref>एक प्रकार की छपी हुई चादर, जो बिछाने के काम आती है</ref>, कहाँ पैबै हथिया दंतार हे।
हाजीपुर हटिया हो बाबा पाटक जाजिम, राजा घर हथिया दंतार<ref>जिसके दाँत मुँह के बाहर निकले हो</ref> हे॥2॥
गोतिया<ref>जो गोत्र का हो; गोत्रज</ref> मनाबिह<ref>मनाइएगा</ref> हो बाबा गोतनी मनाबिह, तबे होयत धरम तोहार हे।
गोतिया मनोलियै गे बेटी गोतनी मनोलियै, मनबो न करै छोट भाय हे।
अपने जलमैलियै बेटी अपने पतिपाललियै<ref>प्रतिपाल किया</ref>, गोतिया भेल बेइमान हे॥3॥

शब्दार्थ
<references/>