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उजाले से अँधेरे तक नहाने वाली / एल्युआर
Kavita Kosh से
उस दिन की दोपहर
चंचल हो लहराती है
समुद्र लहराता है चंचल हो
चंचल हो रेत भी लहराती है
हम प्रशंसा करते हैं
वस्तुओं के क्रम की
पत्थरों के
रोशनी के क्रम की
पल प्रति पल की
मगर वह छाया
मिटती जा रही थी
छटती जा रही थी
वह उदासी
यहाँ
अभिजात्य सी उतरती है
आकाश से शाम
बुझती हुई आग में
सब दुबकते जा रहे हैं
शाम
तू सो सकती है समुद्र में
पहले जैसे
वहाँ तनिक भी रोशनी नहीं है।
मूल फ़्रांसिसी से अनुवाद : हेमन्त जोशी