भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उठो शोषित / बाल गंगाधर 'बागी'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उठो जवानों लड़ो जंग, जब सत्ता काबिज1 करना है
तोड़ गुलामी जंग छोड़ दो, पीदे अब न रहना है
शोषण दमन गुलामी का, पतझड़ अब जाने वाला है
भूख गरीबी लाचारी का अंधेरा मिटने वाला है
बहुत हो गया जात-पात अपमान बहुत मजलूमों का2
बहुत हो गया मिट जाना सदियों से अपने घर का

वो दिन अपने फिर न आये, जितने हम अपमान सहे
वही इरादा करके हमको, आगे बढ़ते जाना है

भिड़ जाओ अंधेरे से अब, लिये मशालें हाथों में
चट्टान बने तुम डटे रहो, ज़ुल्मों की बरसतों में
खून के आँसू रोने वालों, अब वो ज़माना जायेगा
हालात हो अपने ख़िलाफ, परवाह नहीं कुछ करना है

उठो जवानों लड़ो जंग, जब सत्ता काबिज करना है
तोड़ गुलामी जंग छोड़ दो, पीदे अब न रहना है

सदियों के संघर्षांे की, ज्वाला नहीं बुझाना है
जहाँ भी कुछ अंधेरा हो, उस घर मंे दीप जलाना है
परिवर्तन की आँधी में, अपना झंडा लहराना है
यही गीत हर मज़लूमों के, कानों में दुहराना है

उठो शोषित लड़ो जंग, जब सत्ता काबिज करना है
तोड़ गुलामी जंग छोड़ दो, पीदे अब न रहना है