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उड़न खटोला / हम्मर लेहू तोहर देह / भावना
Kavita Kosh से
तरेगन से भरल रात में
जब हम गरमी से बेआकुल होकऽ
अगना में बिछा क खटोला
ओस में ठंडाइत रही-
तखनिये चाची
हमरा सुनएले रहथ ऊ कहानी
जेइमे
असमान से उतरल रहे
एगो उड़न खटोला
उहे उड़न खटोला
जेईमे बइठकऽ
हम केतना बेर
सपना में तरेगन पर गेली
आ चान के छूली
केतना बेर उहे उड़न खटोला से
असमान से
भगवानों के उतरइत देखले रही
बिसनाइत-बिसनाइत।
पर नीन खुलला पर
उड़न खटोला हो जाइत रहे गुम
ऊ उड़न खटोला हर लरिका के लेल
एगो बुझउअल रहे
जेक्कर भेद जानेला-
सब्भे व्याकुल रहे
आइ जब
उड़न खटोला उड़न तस्तरी बन गेल हए
आ वैज्ञानिक के
ग्रह पर जीवन के चल गेल हए पता
त ऊ उड़न खटोला
आउरो बड़का बुझऊअल बन गेल हए।