भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उड़ान / पूनम भार्गव 'ज़ाकिर'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चिड़िया उड़
तोता उड़
मैना उड़
और उसी वक़्त
जहन में उड़ान
उतर गई
मैं चिड़िया बन गई
चहचहाट
आसमानी हो गई
दुनिया कि मैं
रानी हो गई
तभी सुना
गाय उड़
उंगली उठी
और
और क्या
वो भी उड़ गई

तड़ाक की ध्वनि
यथार्थ ने सुनी
बन्द हथेलियाँ
छपी उंगलियाँ
एक चांटा था जो
उड़ान पर तारी था
परों के सुख पर भारी था

तो क्या
ना उड़ो
रहो जमीं पर
सुखों की थाती
क्या बुझ गई है बाती

शेर, हाथी, भैंस, भेड़िये
चार पैर के जानवर भी
दो पैर वालों की
मुस्कान में अक्सर
उतरते हैं
उड़ान भरते हैं

सोचना तो तुझे है
कैसे हो
समुन्दर पार कि
स्वप्निल उड़ती
मछलियाँ
परवाज़ की आगाज़ हैं!