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उडीक / राजू सारसर ‘राज’

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मा जसुमती रो
मन हरखावण
ओजूं वीं आंगण
घुघरिया घमकावण
देवां-दुरलभ बै
लीलावां दिखावण,
गीता में करिया
कवळ निभावण
सिस्टी रो
संताप मिटावण
मानखै नैं मिटावां सूं
बचावण
कहो, किरसन !
थंे कद आवोला ?
बा जमना
नीं रैं ’यी आसूती
जिण रै तीर
थे बंसरी बजांवता
बो नीर अमीर हूयौ
जिकौ थां
गउवां नैं पांवता।
कैई कैई काळा नागां
जै ’रीलो कीधौ
बोे नीर जकै नै धोबां में लेय
थे सौगन खांवता
उण कदम रा
ठूंठ नी लाधै
जिण री डाळ राधै नैं
थे हिंडावतां।
बै मिमझरियां
बै हेमपुहुप
केवड़ै री काची कळियां
जिणां सूं थे
राधा नै सजांवता।
बां रूखां रै
औळै-दौळै
गोप्यां सांथै
रास रचांवता।
बां कुंज-बनां रा
सैनाण नीं लाधै
जिकै बनां थै
धेन चरांवता।
बै धेन गळियां में
आंसू ढळकावै
जिणा रो माखण-गोरस
थे चोर-चोर खांवता
मा जसुमती
साम्हीं सौगन खांवता
बीं जमना रो
बिख मिटावण
बां धेनां रो
दरद मिटावण
ओजूं गोरस-माखण
चोरण
कहो, किरसन !
थे कद आवोला ?
उण धरम में
अधरम बापरग्यो
जिण री धजा
आप
द्वापर में फरकाई
उण करम री
गीता नै तज
अणहूती री
पोथ्यां बांचौ
जिकी घूंटी
अरजन नै पाई
बा खूटगी
रोज हरिजै
द्रोपती रा चीर
गोप्यां री
लाज लूंटीजै
जिणां री थां
लाज बचाई।
राजनीति अबै,
राड़नीति है,
जिण री थां
मरजाद बताई।
बै जीवण-दरसण
नीं मानैं लोगड़ा,
जिण री थां नींव लगाई।
पाछा पांगरग्या
कंस रा अंग-अंग
जिण नै
थे बाढ बगाया।
धरम री
मनजाद बतावण
ओजूं करम रो
महतब बतावण
द्रोपत्यां-गोप्यां
री लाज बचावण
राज-काज रा
नेम भूळावण
जीवण रो दरसण
समझावण
कंस रो दंस
भळै मिटावण
मिनखपणै रो
बीज उपजावण
सुदामै रो
दाळद भगावण
भूल्या-भटक्यां नैं
मारग बतावण
हे कर्मजोगी/हे अपररसिया
हे महाज्ञानी/हे महादानी
हे कान्हकंवर/हे जुगद्रष्टा
कहो भलां
थे कद आवोला?