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उतरे नहीं ताल पर पंछी / कैलाश गौतम
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उतरे नहीं ताल पर पंछी
बादल नहीं घिरे
हम बंजारे
मारे-मारे
दिन भर आज फिरे ।
गीत न फूटा
हँसी न लौटी
सब कुछ मौन रहा,
पगडंडी पर आगे-आगे
जाने कौन रहा
हवा न डोली
छाँह न बोली
ऐसे मोड़ मिले ।
आर-पार का न्योता देकर
मौसम चला गया
हिरन अभागा उसी रेत में
फिर-फिर छला गया
प्यासे ही रह गए
हमारे
पाटल नहीं खिले ।
मन दो टूक हुआ है
सपने
चकनाचूर हुए
जितनी दूर नहीं सोचे थे
उतनी दूर हुए
रात गए
आँगन में सौ-सौ
तारे टूट गिरे ।