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उत्तर आधुनिक आलोचक / अमरजीत कौंके
Kavita Kosh से
जब मैंने
भूख को भूख कहा
प्यार को प्यार कहा
तो उन्हें बुरा लगा
जब मैंने
पक्षी को पक्षी कहा
आकाश को आकाश कहा
वृक्ष को वृक्ष
और शब्द को शब्द कहा
तो उन्हें बुरा लगा
परन्तु जब मैंने
कविता के स्थान पर
अकविता लिखी
औरत को
सिर्फ़ योनि बताया
रोटी के टुकड़े को
चांद लिखा
स्याह रंग को
लिखा गुलाबी
काले कव्वे को
लिखा मुर्गाबी
तो वे बोले-
वाह ! भई वाह !!
क्या कविता है
भई वाह !!
मूल पंजाबी से हिंदी में रूपांतर : स्वयं कवि द्वारा