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उत्सव के अंत में / सुदर्शन वशिष्ठ
Kavita Kosh से
बहुत सूना और उदास
लगता है उत्सव के अंत में।
उतारी जाती कनातें शामयाने
रंग बिरंगे बल्बों की लड़ियाँ
गुब्बारे फब्बारे तोरणद्वार।
हर कोने में इकट्ठा होता
कूड़ा कचरा जूठन
और कसैले व्यवहार।
मनों से फिसलते जाते
मिलने बिछुड़ने के क्षण
बिदाई वेला में भर जाता मन
पल-पल बीतते जाते तेज़ी से
बहुत छोटे होते उत्सव के क्षण
यादें लम्बी
उबाऊ दिन अँधेरी रातें गहराती
उत्सव के बाद।
रोशनियाँ हटने के साथ
गहराता घुप्प अँधेरा
आता नहीं सवेरा
बासी पकवान
जूठे काग़ज़ी बरतन
मुरझाते फूलों के हार
उदासीन आचार0-व्यवहार
किसी का नहीं आते।
काम आते
मुस्कान के स6ग किये स्वागत
तृप्त किये अभ्यागत
किये आदर-सत्कार
खुल कर बाँटे उपहार।