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उदारवादी लोग / नित्यानंद गायेन
Kavita Kosh से
दिल्ली, मुम्बई या फिर कोलकाता
यहाँ प्रगतिशील और उदारवादी लोगों की एक बड़ी भीड़ है
ये सभी लेखक या शिक्षक हैं
बहुत सम्मान है इनका, बड़ा नाम है समाज में
इन सबके घरों में कोई न कोई आता है
झाड़ू लगाने, बर्तन माँजने
रात का बचा हुआ खाना
फटे पुराने कपड़े
दान में देते हैं उन्हें
ये सभी उदारवादी लोग
बदले इन ग़रीब लोगों के बच्चों से
अपनी गाड़ियाँ धुलवाते हैं
क्रोध में दुत्कारते और गालियाँ भी दे देते हैं अक्सर
यहीं झलकती हैं उन सबकी प्रगतिशीलता ....