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उद्गार / मुकुटधर पांडेय
Kavita Kosh से
मेरे जीवन की लघु तरणी
आँखों के पानी में तर जा
मेरे उर का छिपा खजाना
अहंकार का भाव पुराना
बना आज मुझको दीवान
तप्त श्वेत बूंदों में ढर जा
मेरे नयनों की चिर आशा
प्रेम पूर्ण सौंदर्य पिपासा
मत कर नाहक और तमाशा
आ मेरी आहों में भर जा
मानस भवन पड़ा है सूना
तमोधाम का बना नमूना
कर उसमें प्रकाश अब दूना
मेरी उग्र वेदना हर जा
अय मेरे प्राणों के प्यारे
इन अधीर आँखों के तारे
बहुत हुआ मत अधिक सता रे
बातें कुछ भी तो अब कर जा
मोहित तुझको करने वाली
नहीं आज वह मुख की लाली
हृदय तन्त्र यह रक्खा खाली
अब नूतन स्वर इसमें भर जा।
-सरस्वती, अप्रेल, 1918