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उनकी ज़िद है / मानबहादुर सिंह

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उन्हें ज़िद है -- वे देश जिएँगे, देश बनेंगे
देश रहे न रहे -- वे ज़रूर रहेंगे
उनकी ज़िद है कि उनकी ज़िद रहे
चाहे कोई जिए -- चाहे कोई मरे...
वे रोतों को गाते हैं --
नंगों को पहिनते हैं
भूखों को खाते हैं
वे चाहते हैं -- धरती सोना बने
जिसे जेब में सिक्के की तरह रख
हिफ़ाजत करें
जिसके लिए युद्ध छिड़े -- सब लड़ें
उन्हें उकसाते वे वीर-रस बनें
तब किसी को धर्म की पताका दें
किसी को जाति की राष्ट्रीयता
फिर वे पैगम्बर बन
मुहब्बत का शान्ति-पाठ करें...

उनकी ज़िद है कि लोग ज़िद न करें
कि उनकी ज़िद न रहे
उनकी ज़िद वेद है, बाइबिल और कुरान है
उनकी ज़िद गोला और बारूद है
एटम बम और मिसाइल है
उनकी ज़िद लेबनान है -- इसराइल है...

उनकी ज़िद है कि उनको ज़िद्दी कहने वाले
पिद्दी से ये लोग जो समझते हैं ख़ुद को
उसकी ज़िद न करें...