‘उनके’ ही चरणों में रहकर उनकी ही कहलाऊँगी।
‘उनके’ प्रति जो प्रेम-भाव है उसको मैं दरसाऊँगी॥
‘उनके’ पूजन की भी विधि मैं अपने आप बनाऊँगी।
अपनी कल हृतंत्री के मैं तारों को झनकाऊँगी॥
अपने ही मन-मानस से मैं प्रेम-सलिल भर लाऊँगी।
गंगा-जमुना नीर बिना ही अर्ध्य अमोल सजाऊँगी॥
हृदय-कुंज के सुन्दर सुरभति भाव कुसुम चुन लाऊँगी।
बड़े प्रेम से ‘उन्हें’ चढ़ाकर अपना प्रेम निभाऊँगी॥
द्रव्य-भेंट के बदले तो मैं स्वयं भेंट चढ़ जाऊँगी।
इसी तरह की पूजा करके ‘उनका’ मान बढ़ाऊँगी।
अपने निर्मल मानस का मैं ‘उनको’ हंस बनाऊँगी।
भाँति-भाँति के कौतुक करके ‘उनका’ चित्त चुराऊँगी॥
उनके ही दरवाजे़ अब मैं भीख माँगने जाऊँगी।
सम्मुख जाकर उच्च स्वर से प्रेम-पुकार लगाऊँगी॥
प्रेम-अश्रु-मुक्ताओं का मैं सुन्दर हार बनाऊँगी।
भक्ति-भाव से, सरल स्नेह से ‘उनको’ ही पहनाऊँगी॥