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उपकृत / महेन्द्र भटनागर

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इन फूलों ने

मेरे घर - ऑंगन में
ख़ुशबू भर दी है,
एकाकी बोझिल
जीवन की
सारी तनहाई
हर ली है !
इन फूलों को
खिलने दो,
डालों पर
हिलने दो !

मेरे जर्जर तन से
ऊसर मन से
भावाकुल
मिलने दो !

इन फूलों ने
जग के ऑंगन को
महकाया है,
रंग - बिरंगी आभा से
लहकाया है !

इन फूलों को
खिलने दो,
डालों के झूलों पर
हिलने दो !

दुनिया-भर के लोगों से
हँस-हँस मिलने दो,
लिपट-लिपट कर
मिलने दो !


इन फूलों ने
भयंकर धरती
मनहर कर दी है,
हाँ, हाँ.....
नाना प्रेम-प्रसंगों से
भर दी है !

इन फूलों को
पर्वत - पर्वत
खिलने दो,
मरुथल - मरुथल
खिलने दो,
जंगल - जंगल
खिलने दो,
बस्ती - बस्ती
खिलने दो,
घर - घर
दर - दर
खिलने दो !