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उपलब्धियों पर बहस है / विनीत पाण्डेय
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उपलब्धियों पर बहस है हर दिन डिबेट में
बैठी यहाँ अवाम तरक्क़ी के वेट में
वो फैसले की चाह में चक्कर लगा रहा
अगली मिली है डेट उसे पिछली डेट में
आए उड़ा के सुबह कबूतर सफेद वो
अब खा रहे चिकन हैं सजा कर के प्लेट में
जबसे खिलाफ घूस के सख्ती है बढ़ गई
होने लगे हैं काम तो और ऊँचे रेट में
उलझन ने थाम कर है रखा हर किसी को ही
दौलत में, नाम में, कोई उलझा है पेट में