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उपले / सुरेश सेन निशांत
Kavita Kosh से
फटती हुई पौ में
पाथती हुई उपले
वह औरत
पाथती हुई
अपने सुख और दुख
गर्मी और सर्दी से
भीगे हुए जुझारू दिन
उपलों पे भरी हुई हैं
पीड़ा भरी हथेलियाँ
हाथ की रेखाएँ ।