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उभयचर-25 / गीत चतुर्वेदी

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इतना आसान नहीं था सीता को त्यागने का निर्णय जितना लंका को जीतना था
जिस तरह दो सीताएं थीं एक अग्नि में छिपी हुई
उसी तरह दो राम हुए हों
और चूंकि राम की अग्नि परीक्षा कभी हुई ही नहीं
सो कभी लौट ही न पाया हो अग्नि में छुपा दूसरा राम
ऐसे ही मैं जो यहां बैठा हूं दरअसल मैं हूं ही नहीं एक और मैं था जो किसी समय जाकर आग में छुप गया
और अब बुलाने पर भी आ नहीं रहा
ऐसे ही यह जो युग है वह युग है ही नहीं जिसे होना था वह तो कहीं आग में जा पड़ा हुआ
सो इस राम इस मैं इस युग के जो फ़ैसले हैं उस राम उस मैं उस युग के भी होते कोई ज़रूरी तो नहीं
पर यह कैसे पता करें कि उस राम उस मैं उस युग को पीड़ा होती होगी इस इस इस के फ़ैसले सुनकर
आग की ओट से झांक कर देखते हुए राज़ खुल जाने के भय से सावधान