उम्मीद / प्रियदर्शन
यह उम्मीद है जो हमें बचाए रखती है
हालांकि यह बहुत पुराना वाक्य है, बहुत बार लगभग इसी तरह, इन्हीं शब्दों में दुहराया हुआ
लेकिन यह वाक्य पीछा नहीं छोड़ता, जैसे उम्मीद पीछा नहीं छोड़ती।
चिंता के अंधे कुएं में भी किसी हल्के कातर उजाले की तरह बची रहती है।
कहां से पैदा होती है यह उम्मीद
जब आप किसी अंधे कुएं में गिरे पड़े हों
कोई रस्सी, कोई सीढ़ी, कोई ईंट, कोई रोशनी
आपको दिखाई न पड़ रही हो
कोई हाथ बढ़ाने वाला न हो, कोई देखने वाला न हो, कोई सुनने वाला भी न हो
तो भी एक कातर सी लौ जलती रहती है,
कुछ ऐसा हो जाने की उम्मीद
जो आपके खींच लाएगी कुएं से बाहर।
फिर पूछता हूं,
कहाँ से पैदा होती है उम्मीद
यह नासमझी की संतान है
या बुद्धि की विरासत
या उस अबूझ जिजीविषा की देन
जिसमें थोड़ी-सी नादानी भी होती है थोड़ा-सा विवेक भी
थोड़ा-सा डर भी, थोड़ा-सा भरोसा भी
थोड़ी-सी नाकामी भी, थोड़ी-सी कामयाबी भी
दरअसल यह उम्मीद ही है
जिसकी उँगली थामे-थामे इन्सान ने किया है अब तक का सफ़र तय।