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उम्मीदें / वीरा
Kavita Kosh से
इन्तज़ार की आँखों-सा
रुका हुआ है
नदी का पानी
उन उम्मीदों के लिए
जो ढेर दियों-सी
झिलमिलाती
हाथों-हाथ
चली आ रही हैं