उम्र भर तड़पे सहर के वास्ते
बिक गये जो एक घर के वास्ते।
वो परिंदा कब तलक लड़ता भला
था कफ़स में उम्र भर के वास्ते।
घिस गया माथा दुआ करते हुए
उम्र भर तड़पे असर के वास्ते।
मेरे मौला रात लंबी ख़त्म कर
अब उजाला कर सफ़र के वास्ते।
कितने बदले हैं किराए के मकान
छ्त बना पाये न सर के वास्ते।
हम तो हैं बस मील के पत्थर ‘ख़याल’
ज़िंदगी है रहगु्ज़र के वास्ते।