उलझे पथ कैसे सुलझाऊं / संदीप द्विवेदी
जीवन पथ कैसे सुलझाऊं
उलझे पथ कैसे सुलझाऊं
सपने हैं सब आँखें बिछाए
राह कौन सी अपनाऊं
उलझे पथ कैसे सुलझाऊं..
उम्रों का अम्बार रखा था
तय कर लूँगा ये सोच खड़ा था
रह गया सोचते फिर जब देखा
जीवन बस कुछ शेष बचा था
अब है पश्चाताप मगर
किस युक्ति समय विपरीत घुमाऊं
उलझे पथ कैसे सुलझाऊं..
धरती ने चलकर सतत राह
दिन,सदियाँ ,साल बदल डाले
दुनिया ने खुद को कई बार
कितने रंगों में रंग डाले
मुझमे भी था वो कलाकार
अब कैसे वो हुनर दिखा पाऊं
उलझे पथ कैसे सुलझाऊं..
चल छोडें नदिया के धारे
रुक कर एक पतवार बना दें
जो सही है मैंने उथल पुथल
उससे कल का दौर बचा दें
जो छूट गया उसको भूलूं
जो है उसको मीत बनाऊं
उलझे पथ ऐसे सुलझाऊं
दे दूं जग को जो दे सकता हूँ
उनका पथ सरल बना जाऊं
उलझे पथ कैसे सुलझाऊं..