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उलहना / माखनलाल चतुर्वेदी

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यह लाली है,
सरकार आपकी कृपा-पूर्ण जंजीरों के घर्षण से, निकले मोती हैं।
रखवाली है,
हर सिसक और चीत्कारों पर तस्वीर तुम्हारी होती है।
मत खड़े रहो,
ऐ ढीठ रुकावट होती है साँसों के आने-जाने में,
तुम में अरमाँ,
अरमानों में तुम गुँथो नहीं, क्या सुख है धोखा खाने में?
चुम्बन में नहीं, पधारो तुम
हर रोज उदार! प्रहारों में;
त्योहार? सदा सूली के दिन
मनते आये त्योहारों में।

रचनाकाल: खण्डवा-१९३३