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उषा-स्तवन-2 / मदन वात्स्यायन

जिस के स्वागत में नभ ने बरसा दी हैं जोन्हियाँ सभी,
और बड़ ने छाँह बिछा डाली है,
वह तू उषा, मेरी आँखों पर तेरा स्वागत है ।

पत्तों की श्यामता के द्वीप डुबोते हुए हुस्न हिना के
                                        गन्ध ज्वार-सी
हरित-श्वेत जो उदय हुई है,
वह तू उषा, मेरी आँखों पर तेरा स्वागत है ।

एक वस्त्र चम्पई रेशमी, उँगली में नग-भर पहने
स्नानालय की धरे सिटकनी —
वह तू उषा, मेरी आँखों पर तेरा स्वागत है ।
क्षण-भर को दिख गई दूसरे घर में जा छिपने के पहले
अपने पति से भी शरमा कर,
वह तू उषा, मेरी आँखों पर तेरा स्वागत है ।