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उस आदमी पर वार करो / लीलाधर मंडलोई
Kavita Kosh से
सबसे बीच उपस्थित
दृश्य से बाहर
सबसे खतरनाक
मुजरिम है वह
इस सदी का
समूचे देश को
अपने आरामगाह मे तब्दील करता
हमारे बुजुर्गवारों की
शख्सियत से जोंक की तरह
चिपका है वह
पालतू चीते की भाँति अलसाता
करता है रात गए
अपने नाखूनों को
मृत्यु की अन्तिम सीमा तक तेज
रोज सुबह हमारे घर
आतंक के बीच
ढूँढते हैं दुश्मन के खिलाफ सबूत
अखबार अपनी सुर्खियों में
किसी आदमखोर का
जिक्र करते
हो जाते हैं खामोश
पुलिस तैनात है जंगलों में
और वह रोज रोज
अपनी शक्ल बदलता
निश्चित है अपने आक्रमण में
बुजुर्गवार चुप हैं
और मुर्दनी उनके चेहरो का
अविभाज्य अंग
बनती जा रही है लगातार
सबके बीच उपस्थित
दृश्य से बाहर
सबसे खतरनाक
मुजरिम है वह
इस सदी का
उस आदमी पर वार करो