भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उस रात / चंद्र रेखा ढडवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम्हारे मुँह से
फिसल जाते हैं शब्द
और तीखापन ज़्यादा ही रसोई में
फिसल जाता है मेरे हाथों से
अधखाए उठ जाते हो तुम
और मैं पता नहीं
किस-किस स्वाद में डूबी
थाली चाटते बैठी रह जाती हूँ
बड़ी देर तक
खाने की मेज़ पर.